Wednesday, September 10, 2014

भोलेबाबा का भोलापन

एक बार दुर्योधन, दु:शासन, कीचक, जरासंध और भीम भगवान भोलेनाथ के पास पहुंचते हैं और उनसे अमरत्व का वरदान मांगते हैं। भोलेबाबा ऐसा वर देने से यह कहकर मना कर देते हैं कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। किन्तु वे उन सभी को दस हजार हाथियों के बल का आशीर्वाद दे देते हैं। लौटते समय उन्हें एकाएक सूझता है कि दस हाथियों का बल तो मिल गया किन्तु उनकी मृत्यु कैसे होगी यह तो पूछा ही नहीं। वे वापस कैलाश की ओर लौटने लगते हैं। पर भीम कहता है कि वह थक गया है और ऊपर नहीं जाएगा। वे चाहें तो जाकर पूछ आएं, वह नीचे ही उनका इंतजार करेगा। चारों लौटकर भगवान भोलेनाथ के पास पहुंचते हैं और अपना प्रश्न रखते हैं। भगवान भोलेनाथ कहते हैं, किन्तु मैने वरदान तो पांच लोगों को एक साथ दिया था। पांचवा कहां है। उपहास के साथ वे कहते हैं कि भीम थक गया था। नीचे ही इंतजार कर रहा है। भगवन हमें बताएं कि हमारा संहार कौन करेगा। इस पर शिव मुस्कराए और बोले, तुम पांच में से जो यहां उपस्थित नहीं है, वही तुम सबका वध करेगा।
एक अन्य प्रसंग सुनाते हुए कथा व्यास आचार्य श्रीगोपालकृष्ण देवाचार्य कहते हैं कि रावण भोलेनाथ को लंका ले जाना चाहते थे।  उन्होंने अपनी आसुरी सोच के मुताबिक ही तय किया कि भोलेबाबा को तप से प्रसन्न किया जाए और पार्वती को मांग लिया जाए। जब पार्वती लंका में रहेंगी तो भोलेबाबा को भी वहां आना ही पड़ेगा। वह अपने तप में सफल हो जाता है। भोलेबाबा से पार्वती को मांग भी लेता है और लंका की तरफ चल पड़ता है। इस अधर्म को देख विष्णु चुप नहीं रह पाते। वे रावण का रास्ता रोक लेते हैं। वे रावण पर योगमाया का प्रयोग करते हैं और कहते हैं कि जिस पार्वती को तू ले जा रहा है वह नकली है। असली तो कैलाश पर ही है। इस पर रावण पार्वती को वहीं उतार देता है और लंका लौट जाता है। इसके बाद विष्णु भोलेनाथ को उलाहना देते हैं कि वे हर किसी की मन की मुराद पूरी करने के चक्कर में मुसीबतें खड़ी कर देते हैं और उन्हें (विष्णु को) दौड़ा-दौड़ा आना पड़ता है।

अर्जुन को दिया ब्रह्मज्ञान

अर्जुन जब सखा रूपी भगवान श्रीकृष्ण से ब्रह्मज्ञान की प्रार्थना करते हैं तो श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि जो सबमें मुझे देखे और मुझमें ही सबको पाए वही ब्रह्मज्ञानी है। ऐसे लोगों की भगवान सर्वत्र रक्षा करते हैं। उन्होंने नामदेव की कथा सुनाई। नामदेव उनका उत्कट भक्त था। एक बार नामदेव की झोंपड़ी में आग लग गई। वे तटस्थ भाव से वहां बैठे आहुति देते रहे। लोगों ने उन्हें पागल बताया और पूछा कि नामदेव यह क्या कर रहे हो। नामदेव ने कहा कि यह सब जिसका है उसीको अर्पण कर रहा हूं। निराश्रय नामदेव रात्रि को एक पेड़ के नीचे सो जाता है। उधर अपने भक्त को कष्ट में देखकर श्रीकृष्ण व्याकुल हो जाते हैं। वे अपने पार्षदों को लेकर नामदेव के घर जाने लगते हैं। तब रुकमणी भी उनके साथ चलने की जिद करती है। श्रीकृष्ण के पार्षद चुटकियों में नामदेव के घर की छान छा देते हैं। रुकमणी कालिख लगी दीवारों की पुताई कर देती हैं। जब सुन्दर घर तैयार हो जाता है तो योगमाया नामदेव को उठाकर घर के भीतर सुला देती है। भगवान अपने भक्तों की इसी तरह रक्षा करते हैं।
दूसरे दिन नामदेव के घर की सुन्दर छानी देखकर पड़ोसी पूछताछ करते हैं। वे कहते हैं कि इन्हीं मजदूरों से हम अपना भी घर बनवाएंगे। जितना पैसा लेंगे हम देंगे। नामदेव उन्हें बताते हैं कि ये मजदूर पैसों के लिए काम नहीं करते। यदि आप अपना चित्त भगवान में लगाओगे तभी यह संभव होगा।

करदम ऋषि का विवाह, कपिल का जन्म

ऋषि करदम गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना चाहते हैं तो ब्रह्मा महाराज मनु, उनकी पत्नी शतरूपा और कन्या देवहुति को उनके आश्रम में भेज देते हैं। देवहुति के सामने करदम ऋषि यह शर्त रखते हैं कि एक पुत्र होने तक ही वे गृहस्थ आश्रम में रहेंगे। देवहुति इसे स्वीकार कर लेती है। देवहुति एक के बाद एक नौ कन्याओं को जन्म देती है। इसके बाद एक अत्यंत रूपवान पुत्र के रूप में कपिल अवतार होता है। कुछ दिन बालक कपिल के साथ समय गुजारने के बाद करदम ऋषि वानप्रस्थ को चले जाते हैं। इधर देहहुति भी तपस्या कर अपने शरीर को क्षीण कर लेती है और देह त्याग देती है।

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