Wednesday, September 10, 2014

अलग से हो साईं के मंदिर

साईं की पूजा को लेकर उठे विवाद पर कथा व्यास ने कहा कि धर्मसंसद का फैसला सही है। हमें अपने धर्म की रक्षा करनी चाहिए। तभी धर्म हमारी रक्षा करने में समर्थ होगा। निम्बकाचार्य सम्प्रदाय से आने वाले कथाव्यास कहते हैं कि देवी देवताओं के मंदिरों की अस्मिता को क्षति नहीं पहुंचना चाहिए। सार्इं के प्रति यदि आसक्ति है तो उनके लिए स्वतंत्र मंदिरों का निर्माण किया जा सकता है किन्तु हिन्दू देवी देवताओं के समकक्ष उनकी पूजा नहीं की जा सकती।

समय से पहले कुछ नहीं होता

कथा व्यास ने कहा कि कुछ लोगों द्वारा यह प्रश्न अनावश्यक रूप से उछाला जा रहा है कि शंकराचार्य ने यह मुद्द अब जाकर क्यों उठाया। यह बहस बेमानी है। प्रत्येक कार्य अपना समय आने पर ही होता है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का जन्म छह अबोध शिशुओं की हत्या के बाद हुआ। क्या अब यह भी पूछा जाएगा कि उनका जन्म पहले क्यों न हुआ। यदि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म पहले हो जाता तो कंस के हाथों क्या वह घोर पाप होते? भगवान श्रीकृष्ण पापों और अधर्म का नाश करते हैं।

भाषा, भाव, संस्कृति की रक्षा हो

कथा व्यास ने कहा कि मनुष्य को अपनी भाषा, भाव, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करनी चाहिए। संस्कृत हमारी सभ्यता का मूल है। इसकी उत्पत्ति शिवजी के डमरू से निकले 14 स्वरों से हुआ। इसका ज्ञान नहीं होने के कारण ही लोग भ्रमित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज विश्व के अनेक विकसित देशों में संस्कृत का गहन अध्ययन हो रहा है ताकि वे हमारी संस्कृति और सभ्यता को उसके मूल रूप में समझ सकें जबकि हम पाश्चात्य के अंधानुकरण में अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। इसका परिणाम चारों तरफ दिखाई दे रहा है।

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