कथा व्यास ने बताया कि श्रीमदभागवत महापुराण की रचना महर्षि वेद व्यास ने सरस्वती नदी के तट पर स्थित अपने आश्रम में की थी। इसकी प्रेरणा उन्हें महर्षि नारद से मिली थी। उनके आश्रम के चारों तरफ बेरों के पेड़ थे जिसके कारण यह बद्रिकाश्रम भी कहलाता है।
वेद व्यास के पुत्र शुकदेव जन्म के साथ ही वैरागी हो गए और वन को चले गए। उन्हें रोकने की सभी चेष्टाएं विफल हो गईं। इधर वेद व्यास ने श्रीमदभागवत महापुराण श्लोक की रचना कर ली थी। इसमें 12 स्कंध, 335 अध्यायों में 18 हजार श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण के 22 अवतारों की विस्तार से चर्चा है। अब इसे कहने के लिए योग्य व्यक्ति की तलाश शुरू हुई। वेद व्यास को शुकदेव की याद आई। उन्होंने अपने दो शिष्यों को बुलाया और उन्हें एक एक श्लोक कंठस्थ करा दिया। इसके बाद उन्होंने दोनों को वन में भेज दिया। उन्हें विश्वास था कि इन श्लोकों को सुनने के बाद शुकदेव वापस घर लौट आएंगे। इनमें से पहला श्लोक जब शुकदेव के कानों में पड़ा तो उन्होंने इसे कहने वाले को अपने पास बुलाया और पूछताछ की। उसने बताया कि इसकी रचना वेद व्यास जी ने की है। श्लोक की सुन्दरता पर वे मोहित हो गए। पर शुकदेव ने मन में यही सोचा कि जिस गृहस्थाश्रम को वे छोड़ आए हैं वहां जाना उचित नहीं होगा। तभी उनके कानों में दूसरा श्लोक पड़ा। यह श्लोक भी उतना ही मधुर था। श्लोक ने उनके मन के इस द्वंद्व को खत्म कर दिया कि उन्हें घर जाना चाहिए या नहीं। उनके मन में यह आवाज आई कि विशेष प्रयोजन से कहीं भी जाने में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए। वे घर लौटे और पिता के सान्निध्य में श्रीमदभागवत महापुराण का अध्ययन किया और फिर राजा परीक्षित को इसका कथा सुनाई। यह संसार में श्रीमदभागवत महापुराण कथा सुनाने का पहला दृष्टांत है।
कथा व्यास ने कहा कि श्रीमदभागवत महापुराण स्वयं में श्रीकृष्ण का पूर्ण मिठास लिए हुए है। शुक का एक अर्थ तोता भी है। कहते हैं तोता जिस फल को चोंच मार देता है वह मीठा हो जाता है। इसलिए शुकदेव के मुख से निकलकर श्रीमदभागवत महापुराण और भी मीठा हो गया। इसके श्रवण मात्र से सभी पाप और मोह का नाश होता है।
कलियुग को क्यों छोड़ा
महापराक्रमी राजा परीक्षित ने जब कलियुग को क्षमादान दे दिया तो उनसे पूछा गया कि उन्हें आखिर कलि को क्यों छोड़ा। इस पर राजा परीक्षित ने कहा कि कलि में एक विशेषता यह भी है कि कलियुग में केवल नाम संकीर्तन से ही मोक्ष मिल जाएगा। इससे पहले मोक्ष के लिए कठिन तपस्या साधना करनी पड़ती थी।
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की कथा
एक बार एक संन्यासी को राह में एक वृद्धा बैठी दिखाई दी। उनके पास दो वृद्ध अचेतावस्था में पड़े थे। संन्यासी ने वृद्धा से पूछा, तुम कौन हो और ये वृद्ध कौन हैं। तब वृद्धा ने बताया कि वह उसका नाम भक्ति है। अचेत पड़े दोनों वृद्ध ज्ञान और वैराग्य हैं। उनका जन्म द्रविड़ क्षेत्र में हुआ। बाल्यकाल कर्नाटक में बीता। महाराष्ट्र आते तक यौवन बीतने लगा और गुजरात आते तक वृद्धावस्था ने घेर लिया। तब संन्यासी ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी। वृंदावन पहुंचते ही वह तन्वी हो गई। तब उन्हें यह ज्ञान मिला कि वृंदावन में श्रीराधाकृष्ण की भक्ति नृत्य करती है इसलिए यहां पहुंचते ही तरुणाई लौट आती है।
राधे नाम से दूर होती हैं बाधाएं
कथा व्यास श्रीगोपालशरण देवाचार्य ने बताया कि श्रीराधा का नाम लेने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसी तरह भागवत शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि भा अर्थात जिसकी शोभा सभी वेदों में हो। ग यानि जो गति को जानने वाला हो, गति की महिमा को जानता हो, व से तात्पर्य वरिष्ठ या सर्वोत्तम से है। इसी तरह त से तात्पर्य परम तत्व या भगवान के साक्षात रूप से है।
कलि का अवतार आना बाकी
कथा व्यास ने बताया कि श्रीमदभागवत महापुराण में भगवान के 22 अवतारों के विषय में बताया गया है। कलि का अवतार अभी आना शेष है।
वेद व्यास के पुत्र शुकदेव जन्म के साथ ही वैरागी हो गए और वन को चले गए। उन्हें रोकने की सभी चेष्टाएं विफल हो गईं। इधर वेद व्यास ने श्रीमदभागवत महापुराण श्लोक की रचना कर ली थी। इसमें 12 स्कंध, 335 अध्यायों में 18 हजार श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण के 22 अवतारों की विस्तार से चर्चा है। अब इसे कहने के लिए योग्य व्यक्ति की तलाश शुरू हुई। वेद व्यास को शुकदेव की याद आई। उन्होंने अपने दो शिष्यों को बुलाया और उन्हें एक एक श्लोक कंठस्थ करा दिया। इसके बाद उन्होंने दोनों को वन में भेज दिया। उन्हें विश्वास था कि इन श्लोकों को सुनने के बाद शुकदेव वापस घर लौट आएंगे। इनमें से पहला श्लोक जब शुकदेव के कानों में पड़ा तो उन्होंने इसे कहने वाले को अपने पास बुलाया और पूछताछ की। उसने बताया कि इसकी रचना वेद व्यास जी ने की है। श्लोक की सुन्दरता पर वे मोहित हो गए। पर शुकदेव ने मन में यही सोचा कि जिस गृहस्थाश्रम को वे छोड़ आए हैं वहां जाना उचित नहीं होगा। तभी उनके कानों में दूसरा श्लोक पड़ा। यह श्लोक भी उतना ही मधुर था। श्लोक ने उनके मन के इस द्वंद्व को खत्म कर दिया कि उन्हें घर जाना चाहिए या नहीं। उनके मन में यह आवाज आई कि विशेष प्रयोजन से कहीं भी जाने में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए। वे घर लौटे और पिता के सान्निध्य में श्रीमदभागवत महापुराण का अध्ययन किया और फिर राजा परीक्षित को इसका कथा सुनाई। यह संसार में श्रीमदभागवत महापुराण कथा सुनाने का पहला दृष्टांत है।
कथा व्यास ने कहा कि श्रीमदभागवत महापुराण स्वयं में श्रीकृष्ण का पूर्ण मिठास लिए हुए है। शुक का एक अर्थ तोता भी है। कहते हैं तोता जिस फल को चोंच मार देता है वह मीठा हो जाता है। इसलिए शुकदेव के मुख से निकलकर श्रीमदभागवत महापुराण और भी मीठा हो गया। इसके श्रवण मात्र से सभी पाप और मोह का नाश होता है।
कलियुग को क्यों छोड़ा
महापराक्रमी राजा परीक्षित ने जब कलियुग को क्षमादान दे दिया तो उनसे पूछा गया कि उन्हें आखिर कलि को क्यों छोड़ा। इस पर राजा परीक्षित ने कहा कि कलि में एक विशेषता यह भी है कि कलियुग में केवल नाम संकीर्तन से ही मोक्ष मिल जाएगा। इससे पहले मोक्ष के लिए कठिन तपस्या साधना करनी पड़ती थी।
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की कथा
एक बार एक संन्यासी को राह में एक वृद्धा बैठी दिखाई दी। उनके पास दो वृद्ध अचेतावस्था में पड़े थे। संन्यासी ने वृद्धा से पूछा, तुम कौन हो और ये वृद्ध कौन हैं। तब वृद्धा ने बताया कि वह उसका नाम भक्ति है। अचेत पड़े दोनों वृद्ध ज्ञान और वैराग्य हैं। उनका जन्म द्रविड़ क्षेत्र में हुआ। बाल्यकाल कर्नाटक में बीता। महाराष्ट्र आते तक यौवन बीतने लगा और गुजरात आते तक वृद्धावस्था ने घेर लिया। तब संन्यासी ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी। वृंदावन पहुंचते ही वह तन्वी हो गई। तब उन्हें यह ज्ञान मिला कि वृंदावन में श्रीराधाकृष्ण की भक्ति नृत्य करती है इसलिए यहां पहुंचते ही तरुणाई लौट आती है।
राधे नाम से दूर होती हैं बाधाएं
कथा व्यास श्रीगोपालशरण देवाचार्य ने बताया कि श्रीराधा का नाम लेने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसी तरह भागवत शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि भा अर्थात जिसकी शोभा सभी वेदों में हो। ग यानि जो गति को जानने वाला हो, गति की महिमा को जानता हो, व से तात्पर्य वरिष्ठ या सर्वोत्तम से है। इसी तरह त से तात्पर्य परम तत्व या भगवान के साक्षात रूप से है।
कलि का अवतार आना बाकी
कथा व्यास ने बताया कि श्रीमदभागवत महापुराण में भगवान के 22 अवतारों के विषय में बताया गया है। कलि का अवतार अभी आना शेष है।


ये लीजिए भागवत महापुराण की सम्पूर्ण कथा हिन्दी में
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ReplyDeleteraja parichhat ji ki patni ka kya naam tha .........
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