कथा व्यास श्रीगोपाल शरण देवाचार्य ने कहा है कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद ही मनुष्य का शरीर मिलता है। यह एक दुर्लभ संयोग है किन्तु क्षणभंगुर है। यह शरीर हमसे कब छिन जाए कुछ पता नहीं। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह आरंभ से ही खुद को भगवान के चरणों में अर्पित कर दे, अपने चित्त को भगवान में लगा दे। ऐसा करने पर मृत्यु के समय उसे भगवान की ही याद आएगी और वह भगवान को प्राप्त कर लेगा।
आकाश से सुनते हैं देवता
जन्म जन्मांतर के पुण्यों से भागवत आयोजन का सौभाग्य मिलता है। इसके श्रवण मात्र से पितरों को मोक्ष मिल जाता है तथा अपने लिए भी श्रीकृष्णधाम में स्थान सुरक्षित हो जाता है। भागवत सुनने के लिए आकाश में देवता आकर स्थिर हो जाते हैं और भागवत श्रवण करते हैं, क्योंकि यह सौभाग्य स्वर्गलोक में नहीं है। जिसे भागवत श्रवण का अवसर नहीं मिलता उसका जीवन पशुतुल्य है। ऐसे जातक अपनी मां के कोख को भी अनावश्यक पीड़ा देकर इस दुनिया में आते हैं।
क्यों हुई भागवत की रचना
उन्होंने कहा कि व्यास ने 17 पुराणों और महाभारत की रचना करने के बाद भी पाया कि उनका चित्त शांत नहीं है। वहां रिक्तता है। तब देवर्षि नारद ने उन्हें श्रीकृष्ण पर ध्यान केन्द्रित करने का उपदेश दिया। इसके बाद महर्षि व्यास ने श्रीमदभागवत महापुराण की रचना की। वेदव्यास के पुत्र शुकदेव ने सबसे पहले श्रीमदभागवत महापुराण राजा परीक्षित को सुनाया। श्रीमदभागवत साक्षात कल्पवृक्ष है। यह शब्द रूप में स्वयं श्रीकृष्ण हैं। इसलिए इसके श्रवण से मोक्ष मिल जाता है। उन्होंने बताया कि इस आयोजन का सौभाग्य जन्म जन्मांतर के पुण्यों से प्राप्त होता है।
किसे है कथा का अधिकार
वही साधक कथा का अधिकारी है जिसने ज्ञान प्राप्त किया हो, वैराग्य की स्थिति में हो और भक्ति में पूर्ण हो। सही मायने में कथा वाचक को विरक्त, वैष्णव या सदविप्र होना चाहिए। उसे वेदों का ज्ञाता होना चाहिए तथा दृष्टांत देने में कुशल होना चाहिए। उसमें लोभ नहीं होना चाहिए। कथावाचक को कथा के बीच कभी विषयांतर में नहीं जाना चाहिए। ऐसी कथा को सुनने का कोई लाभ नहीं होता। कथावाचक को केवल उन्हीं बातों की चर्चा करनी चाहिए जिन्हें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है।
भागवत श्रवण से मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति
कथा व्यास आचार्य श्री गोपालशरण देवाचायर्जी ने कहा कि सभी वेदों, पुराणों तथा महाभारत के निचोड़ से रचित भागवत के श्रवण मात्र से सभी कष्टों का अन्त होता है। भागवत कथा श्रवण से प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल जाती है।
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